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इच्छामृत्यु

  सभी को यह बुनियादी अधिकार दिया जाना चाहिए कि एक नियत उम्र के बाद, जब उसने पर्याप्त जीवन जी लिया और नाहक ही घसीटना नहीं चाहता... क्योंकि आने वाला कल फिर एक दोहराव ही होगा; उसने आने वाले कल के लिए सब तरह की उत्सुकता खो दी। उसे अपना शरीर छोड़ने का पूरा-पूरा अधिकार है। यह उसका मौलिक अधिकार है।   यह उसका जीवन है। यदि वह इसे जारी नहीं रखना चाहता, किसी को उसे नहीं रोकना चाहिए। सच तो यह है कि हर अस्पताल में ऐसा विशेष वार्ड होना चाहिए जहां जो लोग मरना चाहते हैं वे एक महीने पहले प्रवेश कर सकते हैं, विश्रांत हो सकते हैं, हर उस चीज का आनंद लें जो जीवन भर वे करना चाहते थे लेकिन कर नहीं पाए--संगीत, साहित्य... यदि वे चित्र बनाना चाहें या मूर्ति बनाना चाहें...।    और डाक्टर उन्हें सिखाएं कि कैसे विश्रांत हुआ जाए। अब तक, मृत्यु लगभग भद्दी बात रही है। मनुष्य उसका शिकार हुआ है, लेकिन यह गलती है। मृत्यु को उत्सव बनाया जा सकता है; तुम्हें बस इतना सीखना है कि कैसे इसका स्वागत किया जाए, विश्रांत, शांतिपूर्ण। और एक महीने में, लोग, मित्र उन्हें देखने और मिलने आ सकते हैं और एक साथ रह सकते है...
 🤔 कैंसर: एक आंतरिक दुर्घटना 🤔 स्वर्ग और पृथ्वी--लाओत्से के लिए प्रतीक है। आपके भीतर भी दोनों हैं; आपके भीतर स्वर्ग और पृथ्वी दोनों हैं। और जब आप अपने स्वभाव के अनुकूल चल रहे होते हैं, तब स्वर्ग और पृथ्वी आलिंगन में होते हैं, आपकी परिधि और आपका केंद्र आलिंगन में होते हैं। और जब आप स्वभाव को छोड़ कर चल रहे होते हैं, जब आप कुछ और होने की कोशिश कर रहे होते हैं जो कि आपकी नियति नहीं है, तब आपकी परिधि और आपके केंद्र का संबंध टूट जाता है। तब आपका व्यक्तित्व और आपकी आत्मा दो हो जाती हैं। तब व्यक्तित्व तो आप जबरदस्ती थोपते रहते हैं अपने ऊपर, और आत्मा और आपके बीच का फासला बढ़ता चला जाता है। लाओत्से की भाषा में, तब पृथ्वी और स्वर्ग का संबंध टूट गया, उनका आलिंगन समाप्त हो गया। और इस आलिंगन के टूटने से ही पीड़ा और संताप और दुख पैदा होता है।  #लाओत्से को बहुत प्रेम करने वाले एक व्यक्ति ने अभी-अभी एक किताब लिखी है। किताब बड़ी अनूठी और चौंकाने वाली है। किताब है कैंसर के ऊपर। और उस व्यक्ति का ख्याल ठीक मालूम पड़ता है। #कैंसर नई बीमारी है; और अब तक उसका कोई इलाज नहीं। इस व्यक्ति ने लिखा है कि कैं...

Netaji

 🇮🇳 🇮🇳 सुभाषचंद्र बोस एक शेर थे 🇮🇳 मुझे इंग्लैंड से खबर मिली है कि पांच और पच्चीस के बीच आयु वर्ग के लोगों के लिए एक सर्वेक्षण किया गया है। एक ही प्रश्न पूछा गया था: "वे दो मूल्य कौन से हैं जिन्हें आप जीवन में सबसे सार्थक और महत्वपूर्ण मानते हैं?"  और यह उत्तर देखकर हैरान होंगे, पांच साल के बच्चे से लेकर पच्चीस साल के बच्चे तक के। जवाब हैं: पैसा और सफलता। जीवन में ये दो चीजें सबसे महत्वपूर्ण हैं: प्यार नहीं, हँसी नहीं, ध्यान नहीं, परमानंद नहीं, भगवान भी नहीं। पैसा और सफलता। लेकिन ऐसी दुनिया में जहां पैसा और सफलता सब कुछ है, आप प्रामाणिक नहीं हो सकते - यह खतरनाक है। आपको सफलता के लिए हर कदम पर अपने #निजता(Individuality) का दमन करना होगा और धन के लिए हर कदम पर समझौता करना होगा।  मुझे एक युवक की याद आती है। उनका नाम सुभाष चंद्र बोस था। वह एक महान क्रांतिकारी बन गए और उनके प्रति मेरे मन में अगाध श्रद्धा है, क्योंकि वे भारत के एकमात्र व्यक्ति थे जिन्होंने महात्मा गांधी का विरोध किया था; वह देख सकते थे कि यह सब महात्मापन राजनीति है और कुछ नहीं। भारतीय खुद को बहुत धार्मिक ...

बीते जन्मो का सच | Truth of Past Life | Osho Hindi Pravachan

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Osho ko galiya kyu

 🌹भगवान! आप अक्सर कहा करते हैं कि अस्तित्व को जो दोगे वही तुम पर वापस लौटेगा; प्रेम दोगे, प्रेम लौटेगा; घृणा दोगे, घृणा मिलेगी। यही नियम है।🌹 🌹भगवान, आप तो प्रेम की मूर्ति हैं, आप प्रेम ही हैं, प्रेम ही बांट रहे हैं; फिर भी आपको इतनी गालियां क्यों मिलती हैं? क्या उपरोक्त नियम सच नहीं है? भगवान, समझाइए!🌹 योग कुसुम! प्रेम जब बहुत बढ़ जाता है तो लोग गालियां देते हैं। तुमने देखा न--आप से तुम, तुम से तू! जैसे-जैसे प्रेम बढ़ता है तो आप से तुम होता है, तुम से तू होता है। जैसे-जैसे मित्रता बढ़ती है लोगों में तो एक-दूसरे को गाली देने लगते हैं। मित्रों का लक्षण ही यह है। अगर मित्र भी एक-दूसरे से कहें--आइए, विराजिए, पधारिए! तो उसका मतलब यह है कि मित्रता नहीं है। मित्र मिलते हैं पहले, तो पहले तो एक-दूसरे की पीठ पर जोर से धपाड़ा देंगे। मुल्ला नसरुद्दीन ने एक दिन रास्ते पर एक आदमी को जोर से उसकी पीठ पर धपाड़ा दिया कि वह आदमी गिरते-गिरते बचा। और मुल्ला नसरुद्दीन ने कहा, बहुरुद्दीन, बहुत दिन बाद दिखाई पड़े! उस आदमी ने कहा, क्षमा करिए, मैं बहुरुद्दीन नहीं हूं। मुल्ला ने कहा, अबे तू मुझको धोखा देता है...

Chetna

 भारत के संत--18-दरिया दास—(ओशो) अमी झरत विगसत कंवल--ओशो  मनुष्य-चेतना के तीन आयाम हैं। एक आयाम है--गणित का गद्य का। दूसरा आयाम है--प्रेम का, काव्य का, संगीत का। और तीसरा आयाम है--अनिर्वचनीय। न उसे गद्य में कहां जा सकता, न पद्य में! तर्क  तो असमर्थ है ही उसे कहने में, प्रेम के भी पंख टूट जाते हैं! बुद्धि तो छू ही नहीं पाती उसे, हृदय भी पहुंचते-पहुंचते रह जाता है! जिसे अनिर्वचनीय का बोध हो वह क्या करें? कैसे कहे? अकथ्य को कैसे कथन बनाए? जो निकटतम संभावना है, वह है कि गाये, नाचे, गुनगुनाए। इकतारा बजाए कि ढोलक पर थाप दे, कि पैरों में घुंघरू बांधे, कि बांसुरी पर अनिर्वचनीय को उठाने की असफल चेष्टा करे। इसलिए संतों ने गीतों में अभिव्यक्ति की है। नहीं कि वे कवि थे, बल्कि इसलिए कि कविता करीब मालूम पड़ती है। शायद जो गद्य में न कहा जा सके, पद्य में उसकी झलक आ जाए। जो व्याकरण में न बंधता हो, शायद संगीत में थोड़ा-सा आभास दे जाए। इसे स्मरण रखना। संतों को कवि ही समझ लिया तो भूल हो जाएगी। संतों ने काव्य में कुछ कहा है, जो काव्य के भी अतीत है--जिसे कहा ही नहीं जा सकता। निश्चित ही गद्य की ब...

Osho birthday11

 असतोमा सदगमय तमसोमा ज्योतिर्गमय मृत्योरमा  अमृतगमय  हृदयमा ओशोगमय  अजन्मे ओशो के जन्मदिन पर सभी ओशो प्रेमियों और संन्यासी मित्रों को हार्दिक शुभकामनाएँ ढेरों बधाई ।  सत्य को जानना और उसमें जीना तो सरल है आसान है लेकिन झूठ को छोड़ना और हमारे माने हुए झूठों से छुटकारा पाना बहुत मुश्किल है । क्योंकि हम सदियों से झूठ में जीने के आदि हो गये हैं । जन्म और मृत्यु यह शब्द हजारों वर्ष से इतने अधिक दोहराए जा रहे हैं कि हम में से कोई इन शब्दों के पीछे छिपी हुई झूठ की परतें उठाकर सत्य को जानना ही नहीं चाहता है । हमारा सामूहिक मन ऐसे ही बहुत से झूठों को सच मानकर एक दूसरों को धोखे में रखने का काम बड़ी कुशलता से करता है । हमारे ईश्वर अल्लाह गाड आत्मा परमात्मा स्वर्ग नर्क जन्नत दोज़ख़ वगैरह भी इसी तरह की फ़िक्शन के मनगढ़ंत झूठों के पुलिंदे हैं इतना ही नहीं एक ही अविभाजित पृथ्वी को हमने हजार हिस्सों में बाँट लिया है और हजारों वर्षों से हम दूसरे के हिस्से पर क़ब्ज़ा करने के लिए लाखों करोड़ों लोगों का खून बहाते रहे हैं ।और कभी यह नहीं सोचते कि यह सब कोरी मान्यताओं का फैलाव है इन ...